राजेंद्र राठौर@छत्तीसगढ़/पितरों के ऋण से मुक्ति के लिए 15 दिनों तक तर्पण करने के बाद शुक्रवार को धार्मिक नगरी शिवरीनारायण के महानदी, शिवनाथ और जोक के त्रिवेणी संगम में ऐसे लोग सभी लोग पिंडदान कर डुबकी लगाने के साथ ही पितृ पक्ष का विसर्जन करेंगे, जो किसी कारणवश प्रयागराज नहीं जा सकते। महानदी में पिंडदान की मान्यता ठीक उतनी ही है, जितनी गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल प्रयागराज इलाहाबाद की है। पितृपक्ष के अंतिम दिन यहां जिले सहित दूरदराज के लोग पितृ ऋण से मुक्ति पाने के लिए पहुंचेंगे।
भारतीय वैदिक वांगमय के अनुसार, प्रत्येक मनुष्य पर इस धरती पर जीवन लेने के बाद तीन प्रकार के ऋण होते हैं। देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋणा। पितृ पक्ष के श्राद्ध यानी 16 श्राद्ध साल के ऐसे सुनहरे दिन हैं, जिनमें व्यक्ति श्राद्ध प्रक्रिया में शामिल होकर तीनों ऋणों से मुक्त हो सकता है, क्योंकि कहा जाता है इन ऋणों से उऋण होना बहुत जरूरी है। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि मनुष्य जब तक इस ऋण से मुक्त नहीं होगा, तब तक मोक्ष मिलना कठिन होगा। इस बार पितृ पक्ष की शुरूआत 16 सितम्बर से हुई थी। पखवाड़े भर चलने वाले इस पक्ष के दौरान अपनों पितरों के ऋण से मुक्त होने के लिए लोगों ने नदी और तालाबों में पिंडदान कर तर्पण किया। अंतिम तर्पण के साथ पितृ पक्ष की विदाई शुक्रवार को हो रही है। हिन्दू धर्मग्रंथ के अनुसार, यह दिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि पितृ पक्ष का अंतिम तर्पण प्रयागराज इलाहाबाद में करने से सभी ऋणों से छुटकारा पाया जा सकता है, इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोग अंतिम तर्पण के साथ पितृ पक्ष की विदाई इलाहाबाद जाकर गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम में करते हैं, लेकिन जो किन्हीं कारणवश प्रयागराज नहीं पहुंच पाते, उनके लिए धार्मिक नगरी शिवरीनारायण से होकर गुजरी महानदी, जोंक और शिवनाथ का संगम ही प्रयागराज से कम नहीं है। धार्मिक ग्रंथों में इस बात का उल्लेख भी है, जिसमें चित्रोत्पला के त्रिवेणी संगम की ठीक उतनी ही मान्यता है, जितनी प्रयागराज की है। यही वजह है कि पितृ पक्ष के अंतिम दिन पितरों की मोक्ष के लिए यहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचकर पितरों को अंतिम तर्पण देकर विधि-विधान से विदाई देते हैं। इस बार पितृ मोक्ष अमावस्या शुक्रवार को पड़ रहा है। इस दिन जिले सहित प्रदेश भर के कई इलाकों से लोग यहां पहुंचकर अपने पितरों को अंतिम तर्पण देंगे। स्थानीय प्रशासन ने पितृ मोक्ष अमावस्या को ध्यान में रखते हुए महानदी के घाटों की साफ-सफाई कराई है। वहीं पंडितों ने भी अपनी तैयारियां पूरी कर रखी है। शुक्रवार को सुबह से ही यहां तर्पण के लिए लोगों की भीड़ देखने को मिलेगी।
यह है चित्रोत्पला की धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हिन्दुस्तान में गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम प्रयागराज इलाहाबाद में हुआ है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि यहां अस्थि प्रवाहित करने और पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा दूसरा कोई तीर्थ नहीं है, ऐसा भी माना जाता है। मगर मोक्षदायी सहोदर के रूप में छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण को माना जा सकता है। प्राचीन एवं धामिक मान्यता है कि ये सांस्कृतिक तीर्थ चित्रोत्पला गंगा के तट पर महानदी, शिवनाथ और जोंकनदी के साथ त्रिधारा संगम बनाते हैं। इसलिए यहां भी अस्थि विसर्जन किया जाता है और ऐसा विश्वास किया जाता है कि यहां पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिवरीनारायण में माखन साव घाट और रामघाट में अस्थि कुंड है, जिसमें अस्थि प्रवाहित की जाती है।
शिवरीनारायण की महिमा पुण्यदायी
धार्मिक ग्रंथों में इस बात का उल्लेख है कि आठों गण, देवता और मुनि धीरयुत होकर नारायण क्षेत्र के चित्रोत्पला नदी के तट पर निरंतर वास किया करते हैं। कलिंग देश का यह फाटक होने से यह धर्ममय पावन भूमि है। यहां को स्थिरता पाकर निवास करें व दर्शन करें तो उसका दुख का अवश्य नाश हो जाता है। ऐसा पवित्र, पुण्य और मोक्षदायी श्रीनारायण क्षेत्र पुण्यदायी नदी चित्रोत्पला गंगा (महानदी) के तट पर स्थित है। स्कंद पुराण में इसे 'श्रीपुरूषोत्तम क्षेत्रÓ भी कहा गया है। यहां आज भी चतुर्भुजी विष्णु के अन्यन्य रूप जैसे भाबरीनारायण, शिवनारायण और लक्ष्मीनारायण की भव्य, आकर्षक और दर्शनीय मूर्तियों के अलावा वैष्णव मठ, श्रीराम-जानकी मंदिर, श्रीराधाकृष्ण मंदिर और जगन्नाथ मंदिर हैं। प्राचीन काल से शिवरीनारायण को श्रीनारायण क्षेत्र माना जाता है। युगानुयुग से इस क्षेत्र की महिमा पुण्यदायी है।