हमारा छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ की लोक कला, परपंरा, साहित्य के लिए संकल्पित

गुजरात की तर्ज पर जांजगीर में स्थापित होगी सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा

‘इस मिट्टी में कुछ अनूठा है, जो कई बाधाओं के बावजूद हमेशा महान आत्माओं का निवास रहा है’ ये विचार लौह पुरूष सरदार पटेल के हैं, जिसने समाज को एक नई दिशा प्रदान की है। स्वतंत्र भारत की परिकल्पना को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले लौह पुरूष सरदार पटेल के मुरीद जिले में बड़ी संख्या में हैं, जो उनके बताए हुए रास्तों पर चलने के साथ ही अब उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने की तैयारी में जुट गए हैं। यही वजह है कि गुजरात की तर्ज पर जांजगीर में भी सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा स्थापित करने की कवायद शुरू हो गई है। हालांकि, यह कवायद अथरिया कुर्मी समाज के लोगों ने शुरू की है, लेकिन उनके इस उल्लेखनीय कार्य में जिले सहित आसपास के क्षेत्र के सभी समाज के लोग जुडक़र अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाह रहे हैं। अथरिया कुर्मी समाज के पदाधिकारी ब्यास कश्यप एवं अन्य लोगों ने बताया कि जब गुजरात में जनसहयोग से लौह पुरूष की प्रतिमा स्थापित हो सकती है तो यहां क्यों नहीं, इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए सर्व कुर्मी समाज द्वारा जिले में लौह पुरूष की विशाल प्रतिमा स्थापित करने का संकल्प लिया गया है। विशाल प्रतिमा का निर्माण किसी नेता या कारोबारी के चंदे से नहीं, बल्कि समाज के एक-एक घर से जुटाई गई निर्माण सामग्री से होगा। समाज के पदाधिकारी और जागरूक युवा जल्द ही समाज के एक-एक में पहुंचकर सहयोग स्वरूप उनसे निर्माण सामग्री संकलित करेंगे। पदाधिकारियों ने बताया कि गुजरात के बाद यह पहला जिला होगा, जहां लौह पुरूष सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा जनसहयोग से ही स्थापित होगी। उन्होंने बताया कि विशाल प्रतिमा के जरिए लौह पुरूष की गाथा को जन-जन तक पहुंचाना ही उनका उद्देश्य है। कुर्मी समाज के लोग इस मुहिम में सभी समाज को जोडऩे का प्रयास कर रहे हैं, ताकि विशाल प्रतिमा स्थापित कर यह जिला भी देश में रोल माडल बन सके। एक वर्ष का समय तय जिले में सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा तैयार करने के लिए एक साल का समय निर्धारित किया गया है। इस अवधि में समाज के लोग, घर-घर जाकर निर्माण सामग्री के रूप में विभिन्न धातुएं, जिनमें लोहा, सोना, कांसा, पीतल आदि एकत्रित करेंगे और प्रतिमा का निर्माण कराएंगे। अथरिया कुर्मी समाज के पदाधिकारियों ने बताया कि 31 अक्टूबर 2017 को लौह पुरूष सरदार पटेल की जन्म जयंती के अवसर पर जिले में उनकी प्रतिमा स्थापित होगी। समाज के वरिष्ठ और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने इस काम में हरसंभव सहयोग करने का आश्वासन दिया है। विशाल कार्यक्रम होगा जिला मुख्यालय जांजगीर के सरदार पटेल उद्यान में लौह पुरूष सरदार पटेल की मूर्ति स्थापित है, जिसे विशाल स्वरूप देने का प्रयास पूर्व में किया गया था, लेकिन किन्हीं कारणों से प्रयास सर्थक नहीं हुआ। अथरिया समाज उसी जगह जनसहयोग से निर्मित होने वाली लौह पुरूष की विशाल प्रतिमा को स्थापित कराने की कवायद कर रहा है। जिला मुख्यालय में हाल ही में आयोजित सरदार पटेल जयंती समारोह में इस बात पर सहमति बन चुकी है। आगामी 31 अक्टूबर 2017 को सरदार पटेल में विशाल कार्यक्रम आयोजित कर सरदार पटेल की आदमकद प्रतिमा स्थापित की जाएगी।

जो नहीं पहुंच सकते इलाहाबाद, उनके लिए शिवरीनारायण ही प्रयागराज

राजेंद्र राठौर@छत्तीसगढ़/पितरों के ऋण से मुक्ति के लिए 15 दिनों तक तर्पण करने के बाद शुक्रवार को धार्मिक नगरी शिवरीनारायण के महानदी, शिवनाथ और जोक के त्रिवेणी संगम में ऐसे लोग सभी लोग पिंडदान कर डुबकी लगाने के साथ ही पितृ पक्ष का विसर्जन करेंगे, जो किसी कारणवश प्रयागराज नहीं जा सकते। महानदी में पिंडदान की मान्यता ठीक उतनी ही है, जितनी गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल प्रयागराज इलाहाबाद की है। पितृपक्ष के अंतिम दिन यहां जिले सहित दूरदराज के लोग पितृ ऋण से मुक्ति पाने के लिए पहुंचेंगे। भारतीय वैदिक वांगमय के अनुसार, प्रत्येक मनुष्य पर इस धरती पर जीवन लेने के बाद तीन प्रकार के ऋण होते हैं। देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋणा। पितृ पक्ष के श्राद्ध यानी 16 श्राद्ध साल के ऐसे सुनहरे दिन हैं, जिनमें व्यक्ति श्राद्ध प्रक्रिया में शामिल होकर तीनों ऋणों से मुक्त हो सकता है, क्योंकि कहा जाता है इन ऋणों से उऋण होना बहुत जरूरी है। धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि मनुष्य जब तक इस ऋण से मुक्त नहीं होगा, तब तक मोक्ष मिलना कठिन होगा। इस बार पितृ पक्ष की शुरूआत 16 सितम्बर से हुई थी। पखवाड़े भर चलने वाले इस पक्ष के दौरान अपनों पितरों के ऋण से मुक्त होने के लिए लोगों ने नदी और तालाबों में पिंडदान कर तर्पण किया। अंतिम तर्पण के साथ पितृ पक्ष की विदाई शुक्रवार को हो रही है। हिन्दू धर्मग्रंथ के अनुसार, यह दिन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि पितृ पक्ष का अंतिम तर्पण प्रयागराज इलाहाबाद में करने से सभी ऋणों से छुटकारा पाया जा सकता है, इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोग अंतिम तर्पण के साथ पितृ पक्ष की विदाई इलाहाबाद जाकर गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी संगम में करते हैं, लेकिन जो किन्हीं कारणवश प्रयागराज नहीं पहुंच पाते, उनके लिए धार्मिक नगरी शिवरीनारायण से होकर गुजरी महानदी, जोंक और शिवनाथ का संगम ही प्रयागराज से कम नहीं है। धार्मिक ग्रंथों में इस बात का उल्लेख भी है, जिसमें चित्रोत्पला के त्रिवेणी संगम की ठीक उतनी ही मान्यता है, जितनी प्रयागराज की है। यही वजह है कि पितृ पक्ष के अंतिम दिन पितरों की मोक्ष के लिए यहां बड़ी संख्या में लोग पहुंचकर पितरों को अंतिम तर्पण देकर विधि-विधान से विदाई देते हैं। इस बार पितृ मोक्ष अमावस्या शुक्रवार को पड़ रहा है। इस दिन जिले सहित प्रदेश भर के कई इलाकों से लोग यहां पहुंचकर अपने पितरों को अंतिम तर्पण देंगे। स्थानीय प्रशासन ने पितृ मोक्ष अमावस्या को ध्यान में रखते हुए महानदी के घाटों की साफ-सफाई कराई है। वहीं पंडितों ने भी अपनी तैयारियां पूरी कर रखी है। शुक्रवार को सुबह से ही यहां तर्पण के लिए लोगों की भीड़ देखने को मिलेगी। यह है चित्रोत्पला की धार्मिक मान्यता धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हिन्दुस्तान में गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम प्रयागराज इलाहाबाद में हुआ है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि यहां अस्थि प्रवाहित करने और पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसा दूसरा कोई तीर्थ नहीं है, ऐसा भी माना जाता है। मगर मोक्षदायी सहोदर के रूप में छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण को माना जा सकता है। प्राचीन एवं धामिक मान्यता है कि ये सांस्कृतिक तीर्थ चित्रोत्पला गंगा के तट पर महानदी, शिवनाथ और जोंकनदी के साथ त्रिधारा संगम बनाते हैं। इसलिए यहां भी अस्थि विसर्जन किया जाता है और ऐसा विश्वास किया जाता है कि यहां पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिवरीनारायण में माखन साव घाट और रामघाट में अस्थि कुंड है, जिसमें अस्थि प्रवाहित की जाती है। शिवरीनारायण की महिमा पुण्यदायी धार्मिक ग्रंथों में इस बात का उल्लेख है कि आठों गण, देवता और मुनि धीरयुत होकर नारायण क्षेत्र के चित्रोत्पला नदी के तट पर निरंतर वास किया करते हैं। कलिंग देश का यह फाटक होने से यह धर्ममय पावन भूमि है। यहां को स्थिरता पाकर निवास करें व दर्शन करें तो उसका दुख का अवश्य नाश हो जाता है। ऐसा पवित्र, पुण्य और मोक्षदायी श्रीनारायण क्षेत्र पुण्यदायी नदी चित्रोत्पला गंगा (महानदी) के तट पर स्थित है। स्कंद पुराण में इसे 'श्रीपुरूषोत्तम क्षेत्रÓ भी कहा गया है। यहां आज भी चतुर्भुजी विष्णु के अन्यन्य रूप जैसे भाबरीनारायण, शिवनारायण और लक्ष्मीनारायण की भव्य, आकर्षक और दर्शनीय मूर्तियों के अलावा वैष्णव मठ, श्रीराम-जानकी मंदिर, श्रीराधाकृष्ण मंदिर और जगन्नाथ मंदिर हैं। प्राचीन काल से शिवरीनारायण को श्रीनारायण क्षेत्र माना जाता है। युगानुयुग से इस क्षेत्र की महिमा पुण्यदायी है।

खेत में नक्शा उकेर देश को बताया अतुल्य, सरकार से मांगा 2100 समर्थन मूल्य

कृषि प्रधान देश में आज जहां ज्यादातर लोग घाटे का सौदा समझकर खेती-किसानी से अपना पीछा छुड़ाने लगे हैं, ऐसे समय में ग्राम मेहंदा के एक युवा किसान ने हौसला दिखाते हुए न केवल खेती को अपना व्यवसाय चुना है, बल्कि इस किसान ने इस वर्ष अपने खेत में अलग-अलग प्रजाति के धान के पौधों से हिन्दुस्तान का नक्शा उकेरकर किसानों की पीड़ा को सरकार तक पहुंचाने की कोशिश की है। सिर्फ इतना ही नहीं, इस किसान ने नक्शे के बीच स्लोगन लिखकर धान का समर्थन मूल्य 2100 रुपए किए जाने की गुजारिश भी सरकार से की है। युवा किसान का मानना है कि उसकी यह मेहनत जरूर रंग लाएगी और इस प्रयास से प्रदेश के लाखों अन्नदाताओं का भला होगा। जांजगीर-चांपा जिले के नवागढ़ विकासखंड के अंतर्गत ग्राम मेहंदा की पहचान खेती-किसानी के कारण आज छत्तीसगढ़ राज्य ही नहीं, बल्कि आसपास के कई प्रदेशों में बन चुकी है। छोटे से इस गांव के कई किसान नई पद्धति से खेती कर धान का बम्पर उत्पादन करते हैं। उन्हीं किसानों में से एक संदीप तिवारी भी हैं, इनकी अपनी विशिष्ट पहचान है। इस युवा किसान ने इस बार अपने खेत में धान के विभिन्न प्रजातियों के पौधों से भारत का मानचित्र तैयार किया है, जिसकी क्षेत्र में इन दिनों खूब चर्चा है। खेत के पास से गुजरने वाले हर शख्स की एकबारगी नजर भारत के मानचित्र की ओर जरूर पड़ती है। खेत के बीचों-बीच उकेरा गया मानचित्र भले ही सामान्य लगता है, लेकिन युवा किसान तिवारी ने उस मानचित्र के जरिए प्रदेश के लाखों किसानों की प्रमुख मांग यानी धान का समर्थन मूल्य 2100 रुपए किए जाने की बात केन्द्र और राज्य सरकार तक पहुंचाने की कोशिश की है। संदीप ने गांव के ही अपने कुछ साथियों के साथ तीन से चार दिन तक मेहनत के बाद रोपाई पद्धति से धान लगाकर खेत में भारत का नक्शा उकेरा है। करीब एक एकड़ के इस खेत में संदीप ने धान के पौधों से ही समर्थन मूल्य में वृद्धि करने का स्लोगन लिखा है। नक्शा और स्लोगन तैयार करने के लिए उन्होंने काले रंगों वाली बारीक प्रजाति की श्यामला तथा एचएमटी धान का उपयोग किया है। युवा किसान संदीप ने बताया कि वे पिछले सात-आठ वर्षों से खेती कर रहे हैं, लेकिन हर वर्ष उनकी यही कोशिश रहती है कि कृषि के क्षेत्र में कुछ नयापन हो। इस मकसद को ध्यान में रखकर वे धान की बोआई करते हैं। तिवारी ने बताया कि कृषि कार्य में दिनों-दिन लागत बढ़ती जा रही है, जिसके मुताबिक किसानों को आर्थिक लाभ नहीं मिल रहा है। धान खरीदी का समर्थन मूल्य 2100 रुपए किए जाने की मांग पुरानी है, जिसके पक्ष में स्वामीनाथन कमेटी ने अपनी अनुशंसा कर दी है, वहीं उच्चतम न्यायालय ने भी सभी सरकारों को आदेशित किया है, बावजूद इसके केन्द्र और राज्य सरकार कोई पहल नहीं कर रही है। ऐसे में सरकार के समक्ष अपनी मांग पहुंचाने के लिए उन्होंने इस अंदाज को बेहतर मानते हुए धान की फसल लगाई है। संदीप का कहना है कि उनके खेत में नहीं, दिल में भी हिन्दुस्तान के प्रति अगाध प्रेम है। इसीलिए भूमिपुत्रों की समस्याएं दूर करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

मेहनत से नहीं डरते छत्तीसगढ़ के किसान-दत्त

0 जाज्वल्यदेव लोक महोत्सव एवं कृषि मेला का समापन

छत्तीसगढ़ के किसान मेहनत से नहीं डरते हैं, लेकिन उन्हें तकनीक व अवसर की जरूरत है। राज्य के लोगों को खुशहाल हर हाल में होना है। यह तभी संभव हो सकेगा, जब खेती व इससे जुड़े तमाम् उपकरण तथा नई तकनीक किसानों को उपलब्ध हो।

ये बातें प्रदेश के राज्यपाल महामहिम शेखर दत्त ने जांजगीर में आयोजित पांच दिवसीय जाज्वल्य देव लोक महोत्सव व कृषि मेला के समापन के अवसर पर मुख्य अतिथि की आसंदी से कही। राज्यपाल ने कहा कि किसान व ग्रामीणों के आर्थिक विकास के लिए प्रदेश सरकार जितनी योजनाएं संचालित कर रही है, उसका समुचित लाभ भी मिल रहा है, यही वजह है कि पिछले कुछ वर्षो की तुलना में लोगों का वर्तमान जीवन स्तर बेहतर है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार व अधिकारी-कर्मचारी विकास के लिए अपने स्तर पर पहल कर रहे है, लेकिन खुद के विकास के लिए जनसाधारण को आगे आना होगा। कृषि मेला व लोक महोत्सव मजबूत और बेहतर मंच है, जिसके माध्यम से खेती-किसानी से संबंधित नई जानकारियों के अलावा लोगों का मनोरंजन भी होता है। साथ ही स्थानीय कलाकारों को अपनी कला प्रदर्शित करने का अवसर भी प्राप्त होता है।

राज्यपाल दत्त ने कहा कि मुख्यमंत्री ने प्रदेश को जिस प्रकार से विश्वसनीय छ
त्तीसगढ़ का नारा दिया गया है। अब वह समय आ गया है, जब खुशहाल छत्तीसगढ़ जोड़ा जाना उचित होगा। अविभाजित मध्यप्रदेश में हरदा और जांजगीर को एग्रीटेक मेला के लिए चुना गया था, उस परंपरा का अब बड़े रूप में निर्वहन किया जा रहा है। जांजगीर-चांपा कृषि प्रधान जिला है, जहां कृषि की अपार संभावनाएं है, यह तभी हो सकेगा, जब किसानों को खेती से जुड़ी सभी चीजें आसानी से उपलब्ध हो। विश्वसनीय छत्तीसगढ़ खुशहाल छत्तीसगढ़ के रूप में आगे आए, जिसमें सभी की सहभागिता जरूरी है। प्रशासन व आम नागरिकों के सहयोग से हो रहा यह अच्छा आयोजन है, इससे अधिक से अधिक किसान व ग्रामीणों को लाभ मिला है।

समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने कहा कि जांजगीर-चांपा जिला कृषि के अलावा कला संस्कृति के कारण भी प्रदेश ही नही, बल्कि देश भर में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुका है। कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार निरंतर प्रयासरत है, जिसका परिणाम है कि पहली और वर्तमान के सिंचाई स्वरूप में काफी वृद्धि हुई है। सिंचाई व धान उत्पादन के मामले में यह जिला हमेशा से अग्रणी रहा है। आगामी दिनों में फसल उत्पादन को लेकर छत्तीसगढ़ निश्चित ही हरियाणा व पंजाब को पीछे छोड़ देगा। डॉ रमन ने कहा कि राज्य सरकार किसानों के एक-एक बीज धान को समर्थन मूल्य पर खरीदेगी और तत्काल रकम भुगतान भी करेगी। उन्होंने लोक महोत्सव व कृषि मेले की सफलता पर प्रसन्नता जाहिर की। जिले के प्रभारी मंत्री दयाल दास बघेल ने कहा कि खेती-किसानी को उन्नत बनाने के लिए नए-नए यंत्र किसानों को उपलब्ध कराए जा रहे हैं, साथ ही कृषि विभाग से किसानों को योजनाओं की जानकारी भी दी जा रही है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के सभी जिलों में कृषि महाविद्यालय खोलने की निर्णय विधानसभा में लिया जा चुका है, आगामी सत्र से कालेज भी शुरू हो जाएंगे।

कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू ने कहा कि जिले की कृषि व्यवस्था को लेकर सरकार गंभीर है, क्यूकि यह जिला फसल उत्पादन के मामले में अग्रणी जिला है। प्रदेश के 175 स्थानों पर अटल किसान सेंटर खोलने की तैयारी हो चुकी है, जिससे किसानों को और भी लाभ मिलेगा। विधानसभा उपाध्यक्ष नारायण चंदेल ने कहा कि अविभाजित मध्यप्रदेश में कृषि मेला के लिए इस जिले को चुना गया था, तब से यह आयोजन हर वर्ष किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह जिला कृषि के क्षेत्र में समृद्ध है, जहां के किसान नई तकनीक से खेती कर बम्पर फसल का उत्पादन करते आ रहे हैं। कृषि मेला के आयोजन से किसानों को आधुनिक यंत्र, नई तकनीक तथा कृषि वैज्ञानिकों से और भी जानकारी मिली है।

स्वागत भाषण कलेक्टर ब्रजेश चंद्र मिश्र ने दिया। इस मौके पर निःशक्त जन आयोग अध्यक्ष बलिहार सिंह, अकलतरा विधायक सौरभ सिंह, सक्ती विधायक सरोजा राठौर, जिला पंचायत अध्यक्ष सूरज ब्यास कश्यप सहित कृषक, पत्रकार, आम नागरिक व सभी विभागों के अधिकारी-कर्मचारी उपस्थित थे।

तालाब विवाह की परंपरा आज भी जारी

0 केरा में 12 जून को होगा तालाब विवाह
0 गांव से बैण्ड बाजे के साथ निकलेगी बारात

तालाब विवाह की लुप्त होती परंपरा को बचाए रखने के लिए जांजगीर जिले के आदर्श ग्राम पंचायत केरा के लोगों ने अनूठा प्रयास किया है। इसके लिए ग्रामीणों ने बकायदा जोर-शोर से तैयारियां की है। पंडित व बारातियों को न्यौता भी दिया गया है। रविवार को यहां पंडित की मौजूदगी में मंत्रोच्चार के साथ विधि-विधान से तालाब का विवाह कराया जाएगा।

तालाबों की संख्या दिनों-दिन घटती जा रही है, लेकिन आज भी कुछ ऐसे गांव हैं, जहां तालाब के पानी का उपयोग निस्तार के अलावा पीने के लिए किया जाता है। वहां के लोग विवाह हुए बिना तालाब का पानी हाथ तक नहीं लगाते। इसी परंपरा को कायम रखते हुए आदर्श ग्राम केरा में रविवार को गांव से बैण्ड बाजा के साथ बारात निकालकर तालाब का विवाह कराया जाएगा, जिसके साक्षी गांव भर के लोग रहेंगे। तालाब विवाह के पूर्व आज सुबह गांव में कलश यात्रा निकाली गई, जो चण्डी मंदिर से प्रारंभ होकर गांव का भ्रमण करते हुए रनसगरा तालाब पहुंची। 12 जून को देवपूजन, हरिद्रालेपन, स्तंभपूजन के साथ विवाह संपन्न होना है। वहीं 13 जून को सहस्त्रधारा, ब्राह्मण भोज का आयोजन भी रखा गया है। सरपंच लोकेश शुक्ला ने बताया कि तालाब का गहरीकरण कराकर उसमें खंभा लगाया गया है, जिसके साथ आचार्य विनोद पाण्डेय, अजय पाण्डेय रविवार को तालाब का विवाह कराएंगे। विवाह कार्यक्रम में गांव भर के लोगों को आमंत्रित किया गया है। बारात के दौरान बैण्ड बाजा की धुन पर बाराती थिरकेंगे व आतिशबाजी भी की जाएगी। केरा के ग्रामीणों ने बताया कि तालाब खुदवाना पुण्य का काम माना जाता है। तालाब यदि व्यक्तिगत उपयोग के हों तो पूजा करना जरूरी नहीं होता, लेकिन सार्वजनिक तालाबों की पूजा जरूरी है। इसमें देवताओं को साक्षी मानकर अपने पर्यावरण के कर्ज को उतारने जैसा लोकार्पण का भाव रहता है। विवाह के पहले जलदेवता वरुण का यूप या स्तंभ प्रतिष्ठित किया जाता है, जो सरई या साल की लकड़ी का होता है। मगर आजकल सीमेंट का स्तंभ लगाकर प्रतिष्ठा संस्कार पूर्ण कराया जाता है।

इस संबंध में आचार्य पंड़ित शारदा प्रसाद द्विवेदी ने बताया तालाब विवाह राजस्थान से आई परंपरा मानी जाती है, जिसमें स्तंभ को पति का प्रतीक माना जाता है। छत्तीसगढ़ के गांवों में कुओं के भी विवाह होते हैं। विवाह के समय पूरे तालाब को सात बार सूत से बांधा जाता है तथा गौदान किया जाता है। तालाब विवाह में प्रतीक स्वरूप स्तंभ गाड़ने की परंपरा तो है ही, लेकिन इन स्तंभों से पानी के स्तर का भी पता लगता रहता है। बहरहाल आदर्श गांव केरा में तालाब विवाह को लेकर उत्सव का माहौल बना हुआ है, वहीं आयोजन को सफल बनाने में ग्रामीण तन्मयता से जुटे हुए हैं।

पहाड़ को चीरकर अनवरत बह रही जलधारा

0 तुर्री गांव में बहती जलधारा रहस्य का विषय
0 ग्रामीण मानते हैं भगवान शिव की कृपा
ग्लोबल वार्मिंग से जहां पूरी दुनिया के लिए परेशानियां बढ़ती जा रही है। वहीं तापमान की वृध्दि से भू-जल स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। हर वर्ष पेयजल तथा निस्तारी की समस्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में प्रकृति के अद्भुत चमत्कार भी कहीं कहीं देखने को मिलते हैं। जिले का तुर्रीधाम एक धार्मिक स्थल है, जहां पहाड़ की चट्टानों के बीच से जलधारा बरसों से अनवरत बह रही है। यह अद्भुत नजारा देखकर यहां पहुंचने वाले लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं, जबकि क्षेत्र के ग्रामीण इसे भगवान शिव की कृपा मानते हैं।


जिला मुख्यालय जांजगीर से 40 किलोमीटर दूर सक्ती विकासखंड का ग्राम तुर्री पहाड़ के बीच से अनवरत् बह रही जलधारा की वजह से प्रदेश भर में काफी प्रसिध्द हो चुका है। यहां महाशिवरात्रि के दौरान सात दिनों का मेला लगता है, जहां छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा सहित देशभर के लोग आते हैं। यहां की प्राकृतिक छटा किसी सुरम्य स्थल से कम नहीं है। करवाल नाले के दोनों ओर बने मंदिर लोगों की श्रध्दा का केंद्र हैं। खासकर भगवान शिव का मंदिर, जिसके अंदर दीवार से अनवरत् जलधारा कई वर्षों से बह रही है। करवाल नाले में ऋषभतीर्थ से तो पानी आता ही है, इसके अलावा पहाड़ की चट्टान से निकल रही अनवरत जलधारा बारहों महीने इस नाले को भरा रखती है। नाले के पानी में स्नान करने पर मन को सुकून महसूस होता है। तुर्रीगांव के बुजुर्ग बताते हैं कि गर्मियों में पहाड़ से निकलने वाली जलधारा और भी तेज हो जाती है। जो मंदिर के निचले हिस्से से होते हुए करवाल नाला में जाकर मिल जाती है, जबकि भगवान शिव का मंदिर पहाड़ से सैकड़ों फीट नीचे बना है। बाहर से यहां पहूँचने वाले लोग अब तक यह नहीं जान पाए हैं कि पहाड़ के भीतर आखिर किस तरह जल की धारा बह रही है।


ग्रामीणों का मानना है कि उनके उपर भगवान शिव की कृपा है, जिसके कारण प्रकृति का यह अनूठा जल स्त्रोत उनके गांव में है, जहां हर मौसम में जलधारा बह रही है। एक अहम् बात यह भी है कि पहाड़ से बह रहा जल गंगाजल की तरह है जो वर्षों तक खराब नहीं होता। यहां के पानी का उपयोग खेतों में कीटनाशक के रूप में भी किया जाता है। क्षेत्र में प्रचलित किवदंति के अनुसार तुर्रीगांव का एक चरवाहा जानवर चराने गया था। इसी दौरान उसे भगवान शिव के दर्शन हुए। भोले भंडारी ने उसे वर मांगने को कहा तो चरवाहे ने गांव में पानी की किल्लत हमेशा के लिए दूर होने का वर मांगा। तब से तुर्रीधाम में चट्टान से पानी अनवरत बह रहा है और गांव में कई वर्षों से गर्मी के दौरान भी पानी की कमी नहीं होती है। बहरहाल यह रहस्य का विषय कई वर्षों से बरकरार है कि आखिर पथरीली चट्टानों के बीच से पानी कहां से आता है।

पंतोरा में रंगपंचमी पर कुंवारी कन्याएं बरसाती हैं लाठियां

वैसे तो बरसाने की लट्ठमार होली देश भर में प्रसिध्द है, लेकिन जिले का एक गांव ऐसा भी है। जहां कुंवारी कन्याएं हर वर्ष धूल पंचमी के दिन गांव में घूम घूम कर पुरूषों पर लाठियां बरसाती हैं। इस मौके पर गांव से गुजरने वाले हर शख्स को लाठियों की मार झेलनी पड़ती है, चाहे वह सरकारी कर्मचारी हो या पुलिस। तीन सौ वर्षों से अधिक समय से जारी लट्ठमार होली अब यहां की परंपरा बन चुकी है।

जिला मुख्यालय जांजगीर से 45 किलोमीटर दूर पंतोरा गांव में होली के पांच दिन बाद पड़ने वाले धूल पंचमी पर्व पर लट्ठमार होली की परंपरा है। इस दिन सुबह से ग्रामीण आयोजन को सफल बनाने के लिए जुट जाते हैं। गांव में स्थित मां काली के मंदिर में पूजा अर्चना कर दोपहर को 9 कुंवारी कन्याओं के हाथ बैगा द्वारा अभिमंत्रित की गई लाठियां थमा दी जाती हैं। उसके बाद मंदिर परिसर में लगी देवताओं की मूर्तियों को प्रतीकात्मक रूप से लट्ठ मार कर परंपरा की शुरूआत की जाती है। इसके बाद गांव की महिलाएं एवं युवतियां हाथों में लाठी लेकर लोगों को पीटने के लिए निकल पड़ती है। महिलाओं और युवतियों से पिटने वाले लोग परंपरा की वजह से उन्हें सहयोग करते हुए नाराज नहीं होते। इस दौरान गांव की गलियों में जब नाचते झूमते लोग पहुंचते हैं तो औरतें, युवतियां व बालिकाएं हाथ में ली हुई लाठियों से उन्हें पीटना शुरू कर देती हैं और पुरुष खुद को बचाते भागते हैं, लेकिन खास बात यह है कि यह सब मारना पीटना हंसी खुशी के वातावरण में होता है। इसके अलावा रंग गुलाल का भी जमकर प्रयोग होता है। यहां से गुजरने वाले भी लट्ठमार होली से नहीं बच पाते। ड्यूटी पर तैनात पुलिस वालों को भी यहां महिलाओं की लट्ठ खानी पड़ती है। गांव के बुजुर्ग नारायण कुंभकार ने बताया कि धूल पंचमी के एक दिन पूर्व संध्या पर गांव के कुछ दूर स्थित पहाड़ी पर स्थित मां मड़वारानी मंदिर से बांस की लकड़ियां, जिसे
स्थानीय भाषा में डंगहा कहा जाता है। बांस की लकड़ियां लाकर मां दुर्गा के मंदिर में रख दी जाती हैं। धूल पंचमी के दिन दोपहर से पूजा की शुरूआत बैगा द्वारा की जाती है। गांव की 9 कुंवारी कन्याओं को देवी मानकर उनकी पूजा की जाती है। उसके बाद मां दुर्गा की मूर्ति को बांस की लकड़ियां समर्पित कर उनकी आराधना की जाती है। इस प्रक्रिया के बाद अभिमंत्रित लकड़ियां कुंवारी कन्याओं को देकर परंपरा की शुरूआत होती है। गांव के लोग भी इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इस परंपरा के पीछे एक कहानी है। पंतोरा के सरपंच संतोष मिर्झा के अनुसार बर्षों पूर्व गांव में महामारी फैली हुई थी। गांव के कई लोग बीमारी की चपेट में थे। तब गांव के एक बैगा ने मां दुर्गा की आराधना कर ग्रामीणों को महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए धूल पंचमी के दिन आराधना की। बैगा के भक्तिभाव से प्रसन्न मां दुर्गा ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि धूल पंचमी के दिन कुंवारी कन्याएं जिस पुरूष पर लाठी बरसाएंगी, वह रोग से मुक्ति पा जाएगा। उस दिन से गांव में लट्ठमार होली की शुरूआत हुई। जो पिछले तीन सौ वर्षों से भी ज्यादा समय से जारी है।