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जज्बे पर मिली आत्मविश्वास को जीत

इंसान के अंदर जज्बा और दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो कोई भी काम कर पाना असंभव नहीं है। जांजगीर-चांपा जिले के एक छोटे गांव पौना में रहने वाले कारपेंटर बलीराम कश्यप ने अपने जज्बा के बूते ही आज बड़ा कारनामा कर दिखाया है।
आर्थिक तंगी से जूझ रहे बलिराम कश्यप का सपना था कि वह ऐसा कुछ कर दिखाए कि उसकी गरीबी भी दूर हो जाए और शोहरत भी मिले। कामयाबी हासिल करने के लिए उसे बड़ी मेहनत करनी पड़ी। कई बार उसे निराशा भी हाथ लगी, लेकिन जज्बा पर आत्मविश्वास को आखिर जीत मिल ही गई। उसने लकड़ी से तैयार साइकिल महज 1000 के खर्च में बाजार तक पहुंचाने की तैयारी भी कर ली है। ग्रामीण कारीगर के इस लाजवाब कारीगरी को देखकर उसके गांव के सभी लोग तारीफों के पुलिंदे बांध रहे हैं। महंगाई ने जहां एक ओर आम लोगों की कमर तोड़ कर रख दी है, वहीं आम आदमी को अपने बच्चों के लिए सामान जुटाने में पसीना छूट जाता है। ऐसी महंगाई से निपटने के लिए पौना के कारीगर बलिराम कश्यप पिता शिवकुमार कश्यप ने कम लागत से लकड़ी की साइकिल तैयार की है। यह सायकल उन लोगों के लिए कारगर साबित हो सकती है, जो अपने बच्चों को बड़ी कंपनियों की महंगी सायकलें खरीद कर नहीं दे सकते। बाजार में बिक रही सायकलों के दाम 3000 रूपए से कम नहीं हैं, लेकिन बलिराम ने जो सायकल बनाई है उसकी लागत महज 1000 रूपए है। यही नहीं साइकिल की मजबूती इतनी कि तीन लोग भी इस पर आराम से सवारी कर सकते हैं। बबूल की लकड़ी से नायाब साइकिल बनाने वाले बलिराम कश्यप बताते हैं कि उसके परिवार की आमदनी काफी कम थी, जिसके कारण थोड़ी-बहुत पढ़ाई करने के बाद उसे आगे पढ़ने का मौका नहीं मिल सका। ऐसे में उसे अपने पिता के साथ बढ़ाई का काम सीखना पड़ा और वह लकड़ी से पलंग, कुर्सी, सोफा आदि बनाने लगा। इसके बाद उसने बढ़ाई काम में निपूर्णता हासिल करने के लिए तिलई के गोविंद बढ़ाई से काम सीखा। दो माह काम सीखने के बाद उसे घर में साइकिल नहीं होने से आवागमन करने में परेशानी होने लगी, तब इस ग्रामीण कारीगर ने लकड़ी से साइकिल बनाने का इरादा बनाया। कुछ दिनों तक बार-बार प्रयास करने के बाद उसे आखिरकार लकड़ी की साइकिल बनाने में सफलता मिल ही गई। लगातार 10 दिनों तक मेहतन कर इस कारीगर ने कम कीमत पर लकड़ी की साइकिल बना डाला, जिसे उसने आकर्षक रूप देने के लिए कई कलाकारी की। बलिराम ने बताया कि उसे घर के लोग इस काम को छोड़कर फर्नीचर आदि बनाने के लिए कहते थे, लेकिन इस कारीगर के दृढ़ निश्चय ने ही उसे आज एक नई पहचान दी है। बबूल की लकड़ी से बनी नायाब सायकल देखने में तो आकर्षक है ही, साथ ही मजबूत भी है। सायकल के लगभग सभी हिस्से लकड़ी से ही बने हैं, लेकिन साइकिल में चाल लाने के लिए लकड़ी के पहिए की जगह ट्युब और टायर लगाए गए है। युवक बलिराम जब इस सायकल पर सवार होकर गांव की गलियों से गुजरता है, तब बच्चे, बूढ़े और जवान उसकी सायकल को बार-बार देखकर आकर्षित होते ही हैं, साथ ही उसे चलाकर और उस पर सवारी करके मजा भी लेते हैं। बलिराम की कहना है कि वह अब लकड़ी का आटो बनाएगा, जिसमें 8 लोग आराम से सफर कर सकेंगे और उसकी लागत सिर्फ 20 हजार रूपए होगी। उसका दावा है कि लकड़ी की आटो एक लीटर पेट्रोल में 60 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तय कर सकेगी, लेकिन अपने सपनों को पूरा करने के लिए उसे आर्थिक मदद की जरूरत है।

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