हमारा छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ की लोक कला, परपंरा, साहित्य के लिए संकल्पित

छत्तीसगढ़ का भांगड़ा है राउत नाचा

आधुनिक मनोरंजन के साधन उपलब्ध होने के बाद भी यहां राउत नाच मनोरंजन का प्रमुख साधन है। अनेक घात-प्रतिघातों, आभावों, असुविधाओं के बावजूद भी यहां के जनमानस में अपनी कला संस्कृति के प्रति अगाध विश्वास है। बारहों मास एक के बाद एक मनाये जाने वाले त्यौहारों, उत्सवों में यहॉ के लोग अपने जीवन में तमाम उतार-चढ़ाव को भुलकर घुल मिल जाते है। राउत नाच करने वालों की संख्या निश्चित नहीं होती हैं। 10-12 से 20-22 तक नर्तक एक साथ ही दल में नृत्य करते हैं। सभी के हाथों में 4-5 फीट का एक-एक तेन्दु का डंड़ा तथा दूसरे हाथ में ढाल होता है। नृत्य के समय जब पैरों के घुघरूओं की रूनझुन व गड़वा बाजा की गुदरूम-गुदरूम की आवाज फिजां में गुंजने लगती हैं, तो लोगों का मन मोहित हो उठता हैं। राउतो द्वारा नाच के बीच-बीच में हाना कहा जाता हैं। जैसे- अरे, रे माई रे बइला ला देवॅव डारा, पाना भईसा ला देवॅव भूसा रे, ऐ गुरूर के टूटी मन हा कइथे मोला मोसा रे। इसी प्रकार एक अन्य व्यंग्य दोहा- भले गांव गुरूर जी हो, बहुते के फरे पिरकी रे, यहां के टूटी मन दिखते खसखस के चिपरी रे। जॉंजगीर-चाम्पा जिले के शहरों व गांवों में आज भी राउत नाच को विशेष प्राथमिकता दी जाती हैं। इनकी वेश-भूषा व नाच की अपनी विशिष्ट समृद्व परंपरा रही हैं। पंजाब में जो स्थान वहां के लंोक नृत्य भांगड़ा का हैं, वही स्थान छत्तीसगढ़ के जॉंजगीर जिले में राउत नाचा का हैं। यदि हम राउत नाच को यहां का भांगड़ा नृत्य कहे तो शायद कोई अतिसंयोक्ति नहीं होगी। राउत नाच की निराली छठा दीपावली, देवउठनी, मातर व मड़ई जैसे पर्वों पर देखा जा सकता है। इसे वर्ष भर नहीं किया जाता हैं। अगघन मास के देवउठनी एकादशी से विधिवत प्रारंभ होने वाले राउत नाच की यह परंपरा रही हैं कि जिले के जिन स्थानों में हाट बाजार सप्ताह के जिस दिन लगते हैं। यहॉ राउतों का नर्तक दल बाजार विहाने उस दिन स्वतः स्फूर्ति तौर पर पहुंचते हैं। फिर यह पूरे माह भर चलता हैं। परंपरागत तौर पर जिले के जिन हाट बाजारों में इस मौके पर राउत बाजार भरता हैं, प्रायः उन सभी स्थानों पर अब महोत्सव व स्पर्धाएं होने लगी हैं। राउतो का दल शहरों व गांवो के प्रत्येक छोट-बडे़ घरों में नाचते हैं। जिस घर में राउतों का समूह जाता है उस घर के कोठी (धान रखने का स्थान) में राउत गोबर का निशान लगाकर उस घर के लिए ईश्वर से घन सम्पत्ति की कामना कर घर के लोंगों से नारियल व यथा शक्ति रूपये-पैसे भेंट के रूप में लेते हैं। इस तरह जांजगीर जिले का विशुद्व लोक संस्कृति का प्रतीक राउत नाच एकता एवं आपसी आमोद-प्रमोद का परिचायक है। जिले का सबसे लोकप्रिय नाच होने के बाद भी राउत नाच तथा इसे प्रदर्शित करने वालों का विकास पूरी तरह नहीं हो पा रहा हैं, जो निःसंदेह चिंतनीय है।

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें