हमारा छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ की लोक कला, परपंरा, साहित्य के लिए संकल्पित

पहाड़ को चीरकर अनवरत बह रही जलधारा

0 तुर्री गांव में बहती जलधारा रहस्य का विषय
0 ग्रामीण मानते हैं भगवान शिव की कृपा
ग्लोबल वार्मिंग से जहां पूरी दुनिया के लिए परेशानियां बढ़ती जा रही है। वहीं तापमान की वृध्दि से भू-जल स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। हर वर्ष पेयजल तथा निस्तारी की समस्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में प्रकृति के अद्भुत चमत्कार भी कहीं कहीं देखने को मिलते हैं। जिले का तुर्रीधाम एक धार्मिक स्थल है, जहां पहाड़ की चट्टानों के बीच से जलधारा बरसों से अनवरत बह रही है। यह अद्भुत नजारा देखकर यहां पहुंचने वाले लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं, जबकि क्षेत्र के ग्रामीण इसे भगवान शिव की कृपा मानते हैं।


जिला मुख्यालय जांजगीर से 40 किलोमीटर दूर सक्ती विकासखंड का ग्राम तुर्री पहाड़ के बीच से अनवरत् बह रही जलधारा की वजह से प्रदेश भर में काफी प्रसिध्द हो चुका है। यहां महाशिवरात्रि के दौरान सात दिनों का मेला लगता है, जहां छत्तीसगढ, मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, उड़ीसा सहित देशभर के लोग आते हैं। यहां की प्राकृतिक छटा किसी सुरम्य स्थल से कम नहीं है। करवाल नाले के दोनों ओर बने मंदिर लोगों की श्रध्दा का केंद्र हैं। खासकर भगवान शिव का मंदिर, जिसके अंदर दीवार से अनवरत् जलधारा कई वर्षों से बह रही है। करवाल नाले में ऋषभतीर्थ से तो पानी आता ही है, इसके अलावा पहाड़ की चट्टान से निकल रही अनवरत जलधारा बारहों महीने इस नाले को भरा रखती है। नाले के पानी में स्नान करने पर मन को सुकून महसूस होता है। तुर्रीगांव के बुजुर्ग बताते हैं कि गर्मियों में पहाड़ से निकलने वाली जलधारा और भी तेज हो जाती है। जो मंदिर के निचले हिस्से से होते हुए करवाल नाला में जाकर मिल जाती है, जबकि भगवान शिव का मंदिर पहाड़ से सैकड़ों फीट नीचे बना है। बाहर से यहां पहूँचने वाले लोग अब तक यह नहीं जान पाए हैं कि पहाड़ के भीतर आखिर किस तरह जल की धारा बह रही है।


ग्रामीणों का मानना है कि उनके उपर भगवान शिव की कृपा है, जिसके कारण प्रकृति का यह अनूठा जल स्त्रोत उनके गांव में है, जहां हर मौसम में जलधारा बह रही है। एक अहम् बात यह भी है कि पहाड़ से बह रहा जल गंगाजल की तरह है जो वर्षों तक खराब नहीं होता। यहां के पानी का उपयोग खेतों में कीटनाशक के रूप में भी किया जाता है। क्षेत्र में प्रचलित किवदंति के अनुसार तुर्रीगांव का एक चरवाहा जानवर चराने गया था। इसी दौरान उसे भगवान शिव के दर्शन हुए। भोले भंडारी ने उसे वर मांगने को कहा तो चरवाहे ने गांव में पानी की किल्लत हमेशा के लिए दूर होने का वर मांगा। तब से तुर्रीधाम में चट्टान से पानी अनवरत बह रहा है और गांव में कई वर्षों से गर्मी के दौरान भी पानी की कमी नहीं होती है। बहरहाल यह रहस्य का विषय कई वर्षों से बरकरार है कि आखिर पथरीली चट्टानों के बीच से पानी कहां से आता है।

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें